कलियाँ शाख पे खिल कर सूखती रहीं
मुस्कुराहटें हवेलियों में दम तोडती रहीं
लोग अंधेरों से दिल बहलाते रहे
चांदनी दहलीज़ पे दम तोडती रही
रोशनी कायनात में हर सिम्त फ़ैली रही
रूह जिस्म के जंगल में भटकती रही
लोग समझे कि अलाव बुझ चुका है
इक चिंगारी बहुत देर तक सुलगती रही
तेरी यादों को कब तक सहेजे रखता
वक़्त की मुट्ठी से रेत सी सरकती रही
दर्द मेरा बर्फ की मानिंद जम गया था
रात तेरी गर्म साँसों से पिघलती रही
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
मुस्कुराहटें हवेलियों में दम तोडती रहीं
लोग अंधेरों से दिल बहलाते रहे
चांदनी दहलीज़ पे दम तोडती रही
रोशनी कायनात में हर सिम्त फ़ैली रही
रूह जिस्म के जंगल में भटकती रही
लोग समझे कि अलाव बुझ चुका है
इक चिंगारी बहुत देर तक सुलगती रही
तेरी यादों को कब तक सहेजे रखता
वक़्त की मुट्ठी से रेत सी सरकती रही
दर्द मेरा बर्फ की मानिंद जम गया था
रात तेरी गर्म साँसों से पिघलती रही
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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