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Friday, 14 September 2012

इन्सानियत क़ैद है तहखानो मे

इन्सानियत  क़ैद है तहखानो मे
हम ढॅढते फिर रहे बियाबानो मे

तुम चॉद ढूढते हो महज़बीनो मे
शुकूँ मिलता नही इन दुकानो मे

हौसला ओर उम्मीद का दिया है
रात तभी फिर रहे हैं तूफानो मे

तिश्नगी मिटाना चाहते हो मियां
फिर रहे हो तुम यहां मैखानो मे

जो मजा है यार फकीरी मे, वो
मजा न मिलेगा इन खजानो मे

शहर मे इन्सानियत ढूढते हो ?
मुर्दे रहा करते हैं इन मकानो मे

यार तुम  बडे अजीब हो मुकेश
खुदा ढूंढ रहे हो इन बुतखानो मे

मुकेश इलाहाबादी ----------------
 

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