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Wednesday, 12 September 2012

या तो क़ैद करले अपनी बाहों में मुझको

या तो क़ैद करले अपनी बाहों में मुझको
या तो रिहा करदे अपनी यादों से मुझको

बाद इसके कोइ इल्तजा बाकी नहीं, बस
आख़िरी जाम दे दे अपने हाथो से मुझको

मिली है कैदे उम्र तेरे इक बयान से, अब 
इक और ज़ख्म दे अपनी बातों से मुझको  

पी चुका हूँ सारे दरिया समंदर और मैखाने
कुछ जाम पी लेने दे अपनी आखों से मुझको

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

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