या तो क़ैद करले अपनी बाहों में मुझको
या तो रिहा करदे अपनी यादों से मुझको
बाद इसके कोइ इल्तजा बाकी नहीं, बस
आख़िरी जाम दे दे अपने हाथो से मुझको
मिली है कैदे उम्र तेरे इक बयान से, अब
इक और ज़ख्म दे अपनी बातों से मुझको
पी चुका हूँ सारे दरिया समंदर और मैखाने
कुछ जाम पी लेने दे अपनी आखों से मुझको
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
या तो रिहा करदे अपनी यादों से मुझको
बाद इसके कोइ इल्तजा बाकी नहीं, बस
आख़िरी जाम दे दे अपने हाथो से मुझको
मिली है कैदे उम्र तेरे इक बयान से, अब
इक और ज़ख्म दे अपनी बातों से मुझको
पी चुका हूँ सारे दरिया समंदर और मैखाने
कुछ जाम पी लेने दे अपनी आखों से मुझको
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
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