शबनम,
चाँद की बाहों से निकल
खुश थी बहुत
मुस्कुराती, मासूम चांदी
सी हंसी,
ये देख सहा न गया आफताब से
उसने फैला दिए अपने
दहकते पंजे
मासूम शबनम पहले तो सुर्ख हुई
फिर दहकने लगी
फिर खो गयी
हवा मे,
अपनी चांदी सी,
मुस्कराहट के साथ
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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