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Sunday, 25 November 2012

मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं


मोम के घर में सूरज उगाये बैठे हैं
अपना तन और मन जलाए बैठे हैं

हम भी अजब तबियत के इंसां हैं,
बूते संगमरमर से दिल लगाये बैठे हैं

लिखी थी जो कभी किताबे मुहब्बत
आज वही हर्फ़ दर हर्फ़ मिटाए बैठे हैं

न मैखाना, न किसी दरिया में  मिटी 
ये कैसी आदिम प्यास जगाये बैठे है



मुकेश इलाहाबादी -------------------

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