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Tuesday, 6 November 2012

चेहरे पे थकान दिखती है

चेहरे पे थकान दिखती है
उम्र  ढलान पे  लगती  है

यहाँ सभी हो गए व्यापारी
घर - घर दूकान सजती है

दिन भर की मजूरी  के बाद,
दो रोटी औ प्याज मिलती है

हाड तोड़ मेहनत करता हूँ
रात नश - नश  तडकती  है

बारिस से कैसे बचूं ?मुकेश
छत मेरी अब भी टपकती है


मुकेश इलाहाबादी ----------

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