एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 9 April 2013
उजाले देखता हूँ तेरी आखों मे
उजाले देखता हूँ तेरी आखों मे
हैं अँधेरे महफूज़ मेरी आखों मे
सहरा बन गया है मेरा वजूद
देखता हूँ समंदर तेरी आखों में
खामोशियाँ बह रही मुसलसल
लाखों ग़म निहां मेरी आखों मे
अब तो आग सी बहा करती है
सुबहो शाम मेरी तेरी आखों मे
मुकेश इलाहाबादी -------------
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