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Friday, 13 June 2014

दर्दो ग़म तो छुप जाता है

दर्दो ग़म तो छुप जाता है
चेहरे की शिकन नहीं छुपती

दिन के उजाले में
मेरा बदन, मेरी परछाई नहीं छुपती

चाँदनी तो बरस रही है,
दरीचों से इस क़दर
इस शब के आलम में भी
मेरी उरनियाँ नहीं छुपती

दिल में तेरे लिए चाहत है कितनी
ये बात मेरे असआर औ,
मेरी आखों से नहीं छुपती

मुकेश इलाहाबादी ---------

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