दर्दो ग़म तो छुप जाता है
चेहरे की शिकन नहीं छुपती
दिन के उजाले में
मेरा बदन, मेरी परछाई नहीं छुपती
चाँदनी तो बरस रही है,
दरीचों से इस क़दर
इस शब के आलम में भी
मेरी उरनियाँ नहीं छुपती
दिल में तेरे लिए चाहत है कितनी
ये बात मेरे असआर औ,
मेरी आखों से नहीं छुपती
मुकेश इलाहाबादी ---------
चेहरे की शिकन नहीं छुपती
दिन के उजाले में
मेरा बदन, मेरी परछाई नहीं छुपती
चाँदनी तो बरस रही है,
दरीचों से इस क़दर
इस शब के आलम में भी
मेरी उरनियाँ नहीं छुपती
दिल में तेरे लिए चाहत है कितनी
ये बात मेरे असआर औ,
मेरी आखों से नहीं छुपती
मुकेश इलाहाबादी ---------
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