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Wednesday, 15 August 2012

स्वतंत्रता दिवस पे मेरे भी दो शब्द ----

                              


हम लोगों ने एक बार फिर झंडे फहरा लिये, मिठाई भी खाली, टी वी पे रंगा रंग कार्यक्रम भी देख लिया लिए,  एक दूसरे को ढेर सारे एस एम एस भेज के खुश हो लिए . नेता लोगों ने भाषण दे के आत्म मुग्ध हो गए और समझ लिए की हमने अपने कर्तव्यों को पूरा कर दिया.  और अपने आपको पूर्ण संतुष्ट महसूस करने लगे। की हमने स्वतंत्रता दिवस अच्छे से मनाया.
ऐसा ही कुछ हम 65 सालों से करते चले जा रहे हैं।
लेकिन मेरे देखे स्वतंत्रता महज़ एक शब्द नहीं है . स्वतंत्रता का अर्थ उत्सव मन भर लेना नहीं है । एक विचारधारा भर नही है।
मेरे देखे स्वतंत्रता हमारा स्वभाव है। मूलभूत अधिकार बिना जिसे जाने बिना जिसे जिये हम चाहे जो कुछ भर करलें वह सब थोथा है। बचपना है आत्मप्रवंचना है।
स्वतंत्रता का महज थोडी सी राजनैतिक स्वतंत्रता भर पा लेना नही होता। 
स्वतंत्रता का अर्थ होता है स्वयं  के तंत्र मे स्थित होना होता है। और जब हम अपने 'स्व' मे स्थित होते हैं। तब ही वास्तिविक सवतंत्रता प्राप्त कर पाते हैं।
और वह जो स्वतंत्रता होती है। यह स्वतंत्रता हमे विचारों के पार ले जाती है। यह स्वतंत्रता हमे भावों के पार ले जाती है। यह स्तंत्रता हमे देश परिवार समाज और धर्म और तमाम अवधारणाओं के बहुत पार ले जाती हैं।
और तब ही हम वास्तिविक रुप से स्वतंत्र हो पाते हैं। उसके पहले जो कुछ भी है झूठा है थोथा है आत्मप्रवंचना हैA
और अगर हम अपने स्व मे बिना स्थित हुए अगर किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता की चाहे जितनी भी बातें कर लें वह सब थोथा  व्यापार ही है। आत्मप्रवंचना मात्र है। और अगर हम इसी मे अपने को सुखी और संतुष्ट मानते हैं। तो हमे कुछ नही कहना सिवाय कि आप सभी को एक बार फिर स्वतंत्रता दिवस की एक दिन बाद ही सही बहुत बहुत मबारकबाद।

मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

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