खुजली भी अजीब चीज है। खुजाओ तो परेषानी न खुजाओ तो परेशानी ।
थोडा खुजाओ मजा आता है। ज्यादा खुजाओ दर्द होता है।
मेरे देखे खुजली दो प्रकार की होती है। शारीरिक और बौद्धिक। षारीरिक खुजली तो थोड़े बहुत प्रयास से ठीक भी हो सकती है और हो भी जाती है।
पर अगर एक बार बौद्धिक खुजली शुरू हो गयी तो आसानी से ठीक नही होती। आदमी लाख कोशिश करले।
खुजली षरीर के उपरी भाग अर्थात चमडे मे हो जाये। तो नाखून से खुजा लें। कद्यें से खुजाले, पेन या पेन्सिल से खुजा लें। खुरदुरे कपडे से रगड रगड के खुजाले। खुद खुजा लें दूसरों से खुजवा लें। दाद खाज की कोई दवा लेलें। जाजिम लोसन लगा लें । आराम मिलेगा। जरुर मिलेगा। भले थोडा मिले या ज्यादा। वह अलग बात है ।
पर बौद्धिक खुजलाहट मे तो कोई भी दवा नही काम करती। यह बहुत जालिम होती है। इसमे कोई भी जाजिम लोशन काम नही करता। सिवाय खुजाने के कोई दवा नही काम करती। काम कर भी नही सकती है क्यांेकि यह तो मिटती है नयी नयी बाते जानने से , पढने से, बहस करने से, भाषण देने या सुनने से। प्रवचन देने सा सुनने से इत्यादि इत्यादि से।
बौद्धिक खुजली एक बार शुरू हो गयी तो षुरु हो गयी। और एक बार षुरु हो गयी तो वह जिंदगी भर के लिसे आजार बन जाती है।
हरामीपने की बात कहूं तो खुजली का एक और प्रकार होता है। वह है काम की की खुजली अगर ये चालू हो जाये तो बिना खुजाये खतम नही होती। बौद्धिक खुजली या हांथ पैर की खुजली तो एक बार बरदास्त की जा सकती है पर काम की खुजली तो नाकाबिले बरदास्त होती है।
मेरे देखे बौद्धिक खुजलाहट को भी एक रोग मानना चाहिये। इस संदर्भ मे वर्ल्ड हेर्ल्थ आगनाइजेषन को ध्यान देना चाहिए और बौद्धिक खुजलाहट को ‘इंटरनेषनल स्टेटिकल क्लासिफिकेषन ऑफ डिसीस इनजरीज एण्ड काउजेज ऑफ डेथ, आई सी डी’ मे सामिल करना चाहिये।
सामान्यतह लोग इसे बीमारी ही नही समझते बल्कि मानव की एक विषेषता समझते हैं।
चूंकि इस रोग के लक्षण बहुत देर मे या बीमारी के बहुत बढ जाने पर ही पता लगते है। जिसे बाद मे किसी दूसरी बीमारी के रुप मे देखा जाने लगता है। पर मेरे हिसाब से बौद्धिक खुजलाहट भी एक बीमारी है। जिसका इलाज होना चाहिये। समय रहते हीं।
हां। अगर बौद्धिक खुजलाहट एक बीमारी है तो मै सचमुच बीमार आदमी हूं।
इस बीमारी के लक्षण भी अजीब अजीब होते हैं। मसलन।
इस बीमारी के होते ही पहले चरण मे आदमी जानकारी के खजाने की तरफ भागता है। वह ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकठठी कर लेना चाहता है। चाहे वह पढने से आये। लिखने से आये। बहसियाने से आये। द्यूमने से आये। सतसंग से आये। बस वह ज्यादा से ज्यादा जानकारी के लिये परेषान रहता है।
दूसरे चरण मे उस प्राप्त जानकारी को दूसरे के उपर उलट कर अपने अंहकार को संतुष्ट करना चाहता है। लिहाजा उचित या अनुचित कोई भी पात्र मिलते अपने ज्ञान का पिटारा खोल के बैठ जाता है।
मेरे देखे समाज का बहुत कुछ बिगाडने मे इस बौद्धिक खुजली को ही जाता है। इस बीमारी से पीडित आदमी अनाप सनाम जानकारियां इकठठा करता है। और फिर अपने आस पास के सारे समाज को प्रयोगषाला समझ उल्टे सीधे प्रयोग करने लगता है। या पूरे समाज को अपनी बाद्धिकता से पागल बनाने लगता है।
और मजे की बात है। समाज इस प्रकार के रोगियों को अस्पताल मे भेजने की जगह पूजने लगता है। सम्मान देने लगता है।
अजीब बिडम्बना है।
खैर मुझे क्या। मेरे लिये तो अच्छा ही है नही तो अबतक मै भी किसी मनोचिकित्सालय मे होता। और पगलाता रहता।
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
थोडा खुजाओ मजा आता है। ज्यादा खुजाओ दर्द होता है।
मेरे देखे खुजली दो प्रकार की होती है। शारीरिक और बौद्धिक। षारीरिक खुजली तो थोड़े बहुत प्रयास से ठीक भी हो सकती है और हो भी जाती है।
पर अगर एक बार बौद्धिक खुजली शुरू हो गयी तो आसानी से ठीक नही होती। आदमी लाख कोशिश करले।
खुजली षरीर के उपरी भाग अर्थात चमडे मे हो जाये। तो नाखून से खुजा लें। कद्यें से खुजाले, पेन या पेन्सिल से खुजा लें। खुरदुरे कपडे से रगड रगड के खुजाले। खुद खुजा लें दूसरों से खुजवा लें। दाद खाज की कोई दवा लेलें। जाजिम लोसन लगा लें । आराम मिलेगा। जरुर मिलेगा। भले थोडा मिले या ज्यादा। वह अलग बात है ।
पर बौद्धिक खुजलाहट मे तो कोई भी दवा नही काम करती। यह बहुत जालिम होती है। इसमे कोई भी जाजिम लोशन काम नही करता। सिवाय खुजाने के कोई दवा नही काम करती। काम कर भी नही सकती है क्यांेकि यह तो मिटती है नयी नयी बाते जानने से , पढने से, बहस करने से, भाषण देने या सुनने से। प्रवचन देने सा सुनने से इत्यादि इत्यादि से।
बौद्धिक खुजली एक बार शुरू हो गयी तो षुरु हो गयी। और एक बार षुरु हो गयी तो वह जिंदगी भर के लिसे आजार बन जाती है।
हरामीपने की बात कहूं तो खुजली का एक और प्रकार होता है। वह है काम की की खुजली अगर ये चालू हो जाये तो बिना खुजाये खतम नही होती। बौद्धिक खुजली या हांथ पैर की खुजली तो एक बार बरदास्त की जा सकती है पर काम की खुजली तो नाकाबिले बरदास्त होती है।
मेरे देखे बौद्धिक खुजलाहट को भी एक रोग मानना चाहिये। इस संदर्भ मे वर्ल्ड हेर्ल्थ आगनाइजेषन को ध्यान देना चाहिए और बौद्धिक खुजलाहट को ‘इंटरनेषनल स्टेटिकल क्लासिफिकेषन ऑफ डिसीस इनजरीज एण्ड काउजेज ऑफ डेथ, आई सी डी’ मे सामिल करना चाहिये।
सामान्यतह लोग इसे बीमारी ही नही समझते बल्कि मानव की एक विषेषता समझते हैं।
चूंकि इस रोग के लक्षण बहुत देर मे या बीमारी के बहुत बढ जाने पर ही पता लगते है। जिसे बाद मे किसी दूसरी बीमारी के रुप मे देखा जाने लगता है। पर मेरे हिसाब से बौद्धिक खुजलाहट भी एक बीमारी है। जिसका इलाज होना चाहिये। समय रहते हीं।
हां। अगर बौद्धिक खुजलाहट एक बीमारी है तो मै सचमुच बीमार आदमी हूं।
इस बीमारी के लक्षण भी अजीब अजीब होते हैं। मसलन।
इस बीमारी के होते ही पहले चरण मे आदमी जानकारी के खजाने की तरफ भागता है। वह ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकठठी कर लेना चाहता है। चाहे वह पढने से आये। लिखने से आये। बहसियाने से आये। द्यूमने से आये। सतसंग से आये। बस वह ज्यादा से ज्यादा जानकारी के लिये परेषान रहता है।
दूसरे चरण मे उस प्राप्त जानकारी को दूसरे के उपर उलट कर अपने अंहकार को संतुष्ट करना चाहता है। लिहाजा उचित या अनुचित कोई भी पात्र मिलते अपने ज्ञान का पिटारा खोल के बैठ जाता है।
मेरे देखे समाज का बहुत कुछ बिगाडने मे इस बौद्धिक खुजली को ही जाता है। इस बीमारी से पीडित आदमी अनाप सनाम जानकारियां इकठठा करता है। और फिर अपने आस पास के सारे समाज को प्रयोगषाला समझ उल्टे सीधे प्रयोग करने लगता है। या पूरे समाज को अपनी बाद्धिकता से पागल बनाने लगता है।
और मजे की बात है। समाज इस प्रकार के रोगियों को अस्पताल मे भेजने की जगह पूजने लगता है। सम्मान देने लगता है।
अजीब बिडम्बना है।
खैर मुझे क्या। मेरे लिये तो अच्छा ही है नही तो अबतक मै भी किसी मनोचिकित्सालय मे होता। और पगलाता रहता।
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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