हर रोज
शुरू होती है
एक अंतहीन यात्रा
सुबह देखे, सपनो के साथ
उम्मीदों के साथ,सपने सच होने के
वक्त पल पल गुजरता है
छिन छिन रोशनी
बढती जाती है
सपने धुंधलाते हैं
अंधेरा बढता जाता है
सूरज सर पे आ जाता है
अंधेरा पूरी तरह फैल जाता है
सपने शून्य मे खो जाते हैं
आखों मे सपना नही अंधेरा होता है
वक्त अपनी रफतार से बहता जाता है
अंदर का अंधेरा बाहर आने लगता है
बाहर का अंधेरा अंदर छाने लगता है
सूरज अपनी मॉंद मे छिपता जाता है
अंधेरा अंदर व बाहर
दोनो जगह घिरता जाता है
दिन के टूटे सपने बुनने के लिये
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
शुरू होती है
एक अंतहीन यात्रा
सुबह देखे, सपनो के साथ
उम्मीदों के साथ,सपने सच होने के
वक्त पल पल गुजरता है
छिन छिन रोशनी
बढती जाती है
सपने धुंधलाते हैं
अंधेरा बढता जाता है
सूरज सर पे आ जाता है
अंधेरा पूरी तरह फैल जाता है
सपने शून्य मे खो जाते हैं
आखों मे सपना नही अंधेरा होता है
वक्त अपनी रफतार से बहता जाता है
अंदर का अंधेरा बाहर आने लगता है
बाहर का अंधेरा अंदर छाने लगता है
सूरज अपनी मॉंद मे छिपता जाता है
अंधेरा अंदर व बाहर
दोनो जगह घिरता जाता है
दिन के टूटे सपने बुनने के लिये
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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