तोड़ सारे तटबंध आ तुझे मै प्यार दूं
बिखरे हुए गेसुओं को आ मै संवार दूं
जानता हूँ विरह अग्नि में जल रही हो
देह गंध बन तुझे आ एक नहीं बहार दूं
नेत्र तुम्हारे अब सजल हो नहीं पायेंगे
नीर अधर से सोख,सारी दुनिया वार दूं
पुष्प सारे उपवन के मै तोड़ लाया हूँ
आओ मेरे पास तुम प्यार मुक्ता हार दूं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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