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Friday, 31 August 2012

पत्थर पे वसंत आता है

एक --

मेरे घर,
अब भी
वसंत आता है

पत्थर पे वसंत आता है

सुबह का सूरज,
धान सी पीली धूप
छितरा जाता है

हवाएं, 
थोड़ी सी महक
छिड़क जाता है

बुलबुल,
कानो में मिस्री
घोल जाती है

फिर मै,
हौले से, मुस्कुराता हूँ
कोई भी एक
प्रेम गीत गाता हूँ 

अब भी मेरे घर,
वसंत आता है
पत्थर पे वसंत आता है

दो--
तुम,
मेरे घर आना

तुम्हारे आँचल मे
डाल दूंगा
थोड़ी पीली सरसों सी धूप

कुछ महक के टुकड़े
और ---
बुलबुल की धुन

फिर,
हम -तुम,
दोनो, मिल कर गायेंगे

कि,
अब भी वसंत आता है
पत्थर पे वसंत आता है
इस उम्र मे भी
वसंत आता है

मुकेश इलाहाबादी --------------
  

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