तुमसे उम्मीदे वफ़ा भी नहीं
तुमसे ग़िला शिकवा भी नहीं
यंहा कोई समंदर नहीं बहता
औ यहां कोई दरिया भी नहीं
ये पत्थर के बुतों का शहर है
और यहां कोई खुदा भी नहीं
ज़रा सी बात पे तुम रूठे, जो
इतना बड़ा मसअला भी नहीं
मुकेश इलाहबादी ------------
तुमसे ग़िला शिकवा भी नहीं
यंहा कोई समंदर नहीं बहता
औ यहां कोई दरिया भी नहीं
ये पत्थर के बुतों का शहर है
और यहां कोई खुदा भी नहीं
ज़रा सी बात पे तुम रूठे, जो
इतना बड़ा मसअला भी नहीं
मुकेश इलाहबादी ------------
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