यादों के आस पास गुज़री
मेरी हर शाम उदास गुज़री
नज़रें उस - उस तरफ घूमीं
जिस-जिस तरफ वो गुज़री
कभी जागे कभी लेटे तो बैठे
बड़ी मुस्किल से शब गुज़री
ज़िदंगी इक रेत का जंगल
वह नहर की तरह गुज़री
कैसे कह दूँ , खुश हूँ मुकेश
ज़िंदगी ही ग़मगीन गुज़री
मुकेश इलाहाबादी -----------
मेरी हर शाम उदास गुज़री
नज़रें उस - उस तरफ घूमीं
जिस-जिस तरफ वो गुज़री
कभी जागे कभी लेटे तो बैठे
बड़ी मुस्किल से शब गुज़री
ज़िदंगी इक रेत का जंगल
वह नहर की तरह गुज़री
कैसे कह दूँ , खुश हूँ मुकेश
ज़िंदगी ही ग़मगीन गुज़री
मुकेश इलाहाबादी -----------
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