दर्द की दास्ताँ हो गए
गुज़रे हुए जहाँ हो गए
यंहा कोई नहीं रहता
टूटे हुए मकाँ हो गए
तेरा प्यार पा के हम
बड़े बदगुमाँ हो गए
कल तक सहरा थे
अब गुलिस्ताँ हो गए
तुम तो खफा थे,क्यूँ
आज मेहरबाँ हो गए
मुकेश इलाहाबादी ---
गुज़रे हुए जहाँ हो गए
यंहा कोई नहीं रहता
टूटे हुए मकाँ हो गए
तेरा प्यार पा के हम
बड़े बदगुमाँ हो गए
कल तक सहरा थे
अब गुलिस्ताँ हो गए
तुम तो खफा थे,क्यूँ
आज मेहरबाँ हो गए
मुकेश इलाहाबादी ---
No comments:
Post a Comment