कई बार यूँ होता है.
प्रेम की गागर लबालब भरी होती है.
सिर्फ गर्दन खाली होती है.
जो शायद खाली भी नहीं होती, दरअसल
जीवन में पाये प्यार के छलक जाने से उपजा खालीपन होता है.
जिसे व्यक्ति प्यार
देने वाले से इतर किसी जल से भरना चाहता है.
पूरा होना चाहता है.
जो किसी दोस्त किसी हमसफ़र किसी अजनबी से भी
ये चाहत हो उठती है.
शायद इसी खालीपन को भरने में हम अक्सर उम्र गुज़ार देते हैं
उस थोड़े से खालीपन को भरने की खातिर
मुकेश इलाहबदी ----------------------------------------
प्रेम की गागर लबालब भरी होती है.
सिर्फ गर्दन खाली होती है.
जो शायद खाली भी नहीं होती, दरअसल
जीवन में पाये प्यार के छलक जाने से उपजा खालीपन होता है.
जिसे व्यक्ति प्यार
देने वाले से इतर किसी जल से भरना चाहता है.
पूरा होना चाहता है.
जो किसी दोस्त किसी हमसफ़र किसी अजनबी से भी
ये चाहत हो उठती है.
शायद इसी खालीपन को भरने में हम अक्सर उम्र गुज़ार देते हैं
उस थोड़े से खालीपन को भरने की खातिर
मुकेश इलाहबदी ----------------------------------------
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