बैठे ठाले की तरंग ----------
आवारा फितरत को लगाम दे दूँ
तुम्हारे जिम्मे ये काम दे दूं
बहुत उड़ चुका खलाओं में अब तक
जिस्म को थोडा आराम दे दूं
मै, फैसला कब तक मुल्तवी रक्ख्नूं
आ, आज इसे मुहब्बत नाम दे दूं,
बहुत तिश्न्नालब है मुसाफिर, कहो तो
तुम्हारे लबों से एक जाम दे दूं
मुकेश इलाहाबादी
आवारा फितरत को लगाम दे दूँ
तुम्हारे जिम्मे ये काम दे दूं
बहुत उड़ चुका खलाओं में अब तक
जिस्म को थोडा आराम दे दूं
मै, फैसला कब तक मुल्तवी रक्ख्नूं
आ, आज इसे मुहब्बत नाम दे दूं,
बहुत तिश्न्नालब है मुसाफिर, कहो तो
तुम्हारे लबों से एक जाम दे दूं
मुकेश इलाहाबादी
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