बैठे ठाले की तरंग ---------------
लोहे सा जिस्म, भट्टी में गल गया
पुर्जा पुर्जा बनकर, मशीनों में ढल गया
एक ही मैदान था, बच्चों के वास्ते,
देखते ही देखते, मकानों में बदल गया
मुकेश इलाहाबादी
लोहे सा जिस्म, भट्टी में गल गया
पुर्जा पुर्जा बनकर, मशीनों में ढल गया
एक ही मैदान था, बच्चों के वास्ते,
देखते ही देखते, मकानों में बदल गया
मुकेश इलाहाबादी
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