Pages

Monday, 30 January 2012

लोहे सा जिस्म, भट्टी में गल गया

बैठे ठाले की तरंग ---------------

लोहे सा  जिस्म, भट्टी में गल गया
पुर्जा पुर्जा बनकर, मशीनों में ढल गया

एक ही मैदान था, बच्चों के वास्ते,
देखते ही देखते, मकानों में बदल गया


मुकेश इलाहाबादी

No comments:

Post a Comment