बैठे ठाले की तरंग !
आदतन मै बेवफा नहीं
कोई क्यूँ समझता नहीं
वक़्त के साथ बह गया
कभी कुछ समेटा नहीं
मुट्ठी भर एहसास भी
रिस गए संजोया नहीं
एक अंजुरी भर मुस्कान
क्यूँ अब तक भूला नहीं
आदतन मै बेवफा नहीं
कोई क्यूँ समझता नहीं
वक़्त के साथ बह गया
कभी कुछ समेटा नहीं
मुट्ठी भर एहसास भी
रिस गए संजोया नहीं
एक अंजुरी भर मुस्कान
क्यूँ अब तक भूला नहीं
मुकेश इलाहाबादी-----
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