फितरत ऐ परिन्दगी काफी नहीं उड़ान के वास्ते
खुला हुआ आसमान भी चाहिए उठान के वास्ते
सिर्फ बाज़ार से ही कारोबार होता नहीं ज़नाब
बनियागीरी की समझ भी चाहिए दूकान के वास्ते
दौलत ऐ ज़हान से बच्चे को क्या गरज, उसे बस
माँ की गोद चाहिए मुश्कान के वास्ते
मुकेश इलाहाबादी
फितरत ऐ परिन्दगी काफी नहीं उड़ान के वास्ते
खुला हुआ आसमान भी चाहिए उठान के वास्ते
सिर्फ बाज़ार से ही कारोबार होता नहीं ज़नाब
बनियागीरी की समझ भी चाहिए दूकान के वास्ते
दौलत ऐ ज़हान से बच्चे को क्या गरज, उसे बस
माँ की गोद चाहिए मुश्कान के वास्ते
मुकेश इलाहाबादी
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