गैरों से रफ्त ज़फ्त बढ़ाया नहीं
अपनों ने हाथ मिलाया नहीं
वे आयेंगे मेरे घर उजाला बनके
इस उम्मीद पे चराग जलाया नहीं
उनकी आखों से मय पीने के बाद
कोई और नशा हमने चढ़ाया नहीं
गुलों से दोस्ती कायम रहे अपनी
इसलिए कांटो का साथ गंवाया नहीं
होगे तुम सिकंदर अपने ज़हान के
खुदा के सिवा कंही सर झुकाया नहीं
--------------------मुकेश इलाहाबादी
(maqbool fida Husain kee painting
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