Pages

Thursday, 2 February 2012

गैरों से रफ्त ज़फ्त बढ़ाया नहीं



गैरों से रफ्त ज़फ्त बढ़ाया नहीं
अपनों  ने   हाथ  मिलाया  नहीं

वे आयेंगे मेरे घर उजाला बनके
इस उम्मीद पे चराग जलाया नहीं

उनकी आखों से मय पीने के बाद
कोई  और  नशा हमने चढ़ाया नहीं

गुलों से  दोस्ती कायम रहे अपनी
इसलिए कांटो का साथ गंवाया  नहीं

होगे तुम सिकंदर अपने ज़हान के
खुदा के सिवा कंही सर झुकाया नहीं




--------------------मुकेश इलाहाबादी




(maqbool fida Husain kee painting

No comments:

Post a Comment