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Sunday, 12 February 2012

आये हो तो कुछ पल ठहर भी जाओ

बैठे ठाले की तरंग ------------------
आये हो तो कुछ पल ठहर भी जाओ
ये मेरा घर है,  कोई  दफ्तर  तो नहीं
गैरों से भी मिलते हैं,हंस कर हम फिर  
तुम  तो अपने हो,  कोई  गैर  तो  नहीं
जो  भी  उतरा  है, उबर  नहीं  पाया  
तेरी  आखों  में  कोई समंदर  तो  नहीं ?
यूँ ज़माने  में  मेरी हस्ती  कुछ  भी नहीं
गर चाहूं  तो  किसी से कमतर तो  नहीं
 ------------------------- मुकेश इलाहाबादी











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