बैठे ठाले की तरंग ------------------
आये हो तो कुछ पल ठहर भी जाओ
ये मेरा घर है, कोई दफ्तर तो नहीं
गैरों से भी मिलते हैं,हंस कर हम फिर
तुम तो अपने हो, कोई गैर तो नहीं
जो भी उतरा है, उबर नहीं पाया
तेरी आखों में कोई समंदर तो नहीं ?
यूँ ज़माने में मेरी हस्ती कुछ भी नहीं
गर चाहूं तो किसी से कमतर तो नहीं
------------------------- मुकेश इलाहाबादी
आये हो तो कुछ पल ठहर भी जाओ
ये मेरा घर है, कोई दफ्तर तो नहीं
गैरों से भी मिलते हैं,हंस कर हम फिर
तुम तो अपने हो, कोई गैर तो नहीं
जो भी उतरा है, उबर नहीं पाया
तेरी आखों में कोई समंदर तो नहीं ?
यूँ ज़माने में मेरी हस्ती कुछ भी नहीं
गर चाहूं तो किसी से कमतर तो नहीं
------------------------- मुकेश इलाहाबादी
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