बैठे ठाले की तरंग ------------
निकले थे, तफरीहन सफ़र के लिए
आप मिल गए हमें उम्र भर के लिए
फिरते हैं अखबारनवीस शहर भर में
कोई तो हादिसा होगा, खबर के लिए
तल्ख़ मेरी बातें हैं, इसलिए, की कोई
जगह नहीं इसमें अगर मगर के लिए
वे रोज़ खिल सकें सिर्फ मेरी नज़र में
बिछ गया हूँ फलक सा, कमर के लिए
मै सफरे ज़िन्दगी में जुल्फों की छाँव हूँ
आ, तू ठहर जा ज़रा एक पहर के लिए
मुकेश इलाहाबादी -----------------
निकले थे, तफरीहन सफ़र के लिए
आप मिल गए हमें उम्र भर के लिए
फिरते हैं अखबारनवीस शहर भर में
कोई तो हादिसा होगा, खबर के लिए
तल्ख़ मेरी बातें हैं, इसलिए, की कोई
जगह नहीं इसमें अगर मगर के लिए
वे रोज़ खिल सकें सिर्फ मेरी नज़र में
बिछ गया हूँ फलक सा, कमर के लिए
मै सफरे ज़िन्दगी में जुल्फों की छाँव हूँ
आ, तू ठहर जा ज़रा एक पहर के लिए
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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