बैठे ठाले की तरंग -----------
उम्र गुज़र गई सलीका न आया
इज़हारे मुहब्बत का तरीका न आया
हजारहां बार आया गया मयखाने में
इक हम हैं पीने का सलीका न आया
जब जब मिले तब तब कसा ताना
कसना मुझे एक भी फिकरा न आया
चेहरा आइना, हर बात बता देता
गम को छुपा सकूं, तरीका न आया
मुकेश इलाहाबादी
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