बैठे ठाले की तरंग ----------------
रात के सीने में फैला हुआ जंगल
देखा हर सिम्त फैला हुआ जंगल
दूर से अक्सर लुभाता हुआ जंगल
पास जाओ तो डराता हुआ जंगल
हर बार ज़मीं सिसकती नज़र आयी
जब भी मैंने देखा कटता हुआ जंगल
तुम क्या जानो कितना तन्हा तन्हा है
ये हरा भरा औ हंसता हुआ जंगल
तू रात, ख़्वाबों के फलक पे खिल जा
मै भी तो देखूं ज़रा हंसता हुआ जंगल
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
रात के सीने में फैला हुआ जंगल
देखा हर सिम्त फैला हुआ जंगल
दूर से अक्सर लुभाता हुआ जंगल
पास जाओ तो डराता हुआ जंगल
हर बार ज़मीं सिसकती नज़र आयी
जब भी मैंने देखा कटता हुआ जंगल
तुम क्या जानो कितना तन्हा तन्हा है
ये हरा भरा औ हंसता हुआ जंगल
तू रात, ख़्वाबों के फलक पे खिल जा
मै भी तो देखूं ज़रा हंसता हुआ जंगल
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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