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Monday, 5 March 2012

हवा में अजब सी सरसराहट है

बैठे ठाले की तरंग ----------

हवा में अजब सी  सरसराहट है
ये तूफ़ान के पहले की आह्ट है

शहर में अजब सी बेचैनी क्यूँ ?
किसी साजिश की सुगबुगाहट है

रात गयी सहर होने होने को है
फलक में परिंदों की चहचाहट है

ये कठिन दौर का ही तकाजा है
हर रिश्ते में अजब कडूआह्ट है

उनसे जो भी मिला जाँ से गया
अजब कातिलाना मुस्कराहट है  

मुकेश इलाहाबादी -----------




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