धूप का टुकडा भी आखिर मचल गया
बैठे ठाले की तरंग ----------------
धूप का टुकडा भी आखिर मचल गया
जुल्फों से छन के गालों पे खिल गया
अज़ब नाज़ुकी देखी उनके बदन की
फूलों की छूने से भी छिल छिल गया
बहुत सख्त जाँ बनता था,खुद को
पाके मुहब्बत की आंच पिघल गया
मुकेश इलाहाबादी -------------------
Maanjh gae ustaad ........bahut khub !
ReplyDeletethnx Darshee jee ----
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