शामो सहर वीरानियाँ सी क्यूँ है ?
बैठे ठाले की तरंग --------
शामो सहर वीरानियाँ सी क्यूँ है ?
हर वक़्त ये बेचैनियाँ सी क्यूँ है ?
मिलते भी हैं, गुफ्तगू भी होती है
फिर,दर्मयाँ हमारे दूरियां सी क्यूँ है ?
प्यारा शख्स है, हंसता भी हैं खूब
फिर घर उसके सिसकियाँ सी क्यूँ है ?
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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