बैठे ठाले की तरंग --------
जब तुम,
लगाती हो - भाल बिंदु
चमकता है, सूरज
और निखरती है रोशनी
जब तुम,
पहनती हो - पायल
बिछलती है, रागनियाँ
और बजती है सरगम
जब तुम,
करती हो- श्रंगार
बन जाती हो धरती
और झुकना चाहता है,
आकाश
तुम्हारे इर्द-गिर्द
मुकेश इलाहाबादी ---------------
bahut hi sundar abhi-vyakti............ superbbbb
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