Pages

Thursday, 17 May 2012

जब तुम,



बैठे ठाले की तरंग --------
                                                     


जब तुम,
झटकती हो - गेसू
बिखरती है, सुगंध
और बहती है बयार




जब तुम,
लगाती हो - भाल बिंदु
चमकता है, सूरज 
और निखरती है रोशनी

जब तुम,
पहनती हो - पायल
बिछलती है, रागनियाँ
और बजती है सरगम

जब तुम,
करती हो- श्रंगार   
बन जाती हो धरती
और झुकना चाहता है,
आकाश
तुम्हारे इर्द-गिर्द

मुकेश इलाहाबादी ---------------


1 comment: