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Thursday, 10 May 2012

मुरीद का मतलब जानती हो

 
मेरी मैना,
 
मुरीद का मतलब जानती हो ?
मुरीद का मतलब होता है -- जो मरने के लिये तैयार हो। और मै तुम्हारा मुरीद हूं। जो मरने के लिये तैयार ही नही है बल्कि मर ही गया है। अब तो शरीर के नाम पे ये खोखल बचा है। अगर इसे तुम जिंदगी कहती हो तो बेषक मै जी रहा हूं। पर ये जान लो इस तरह सांस लेते रहने और चलते फिरते रहने भर का नाम जिंदगी नही है। जिंदगी का मतलब है। हंसना खिलखिलाना और बहते रहना किसी पवित्र नदी सा या झरने सा। कलकल करते रहना खुद बहना और दूसरों को जीवन देते रहना। या फिर चमकना किसी चॉद तारे जैसा और बिखर बिखर जाना चॉदनी की तरह चम्पा चमेली की चटाई की तरह। या फिर तितली सा पंख फडफडाते उडते रहना कभी इस गुलषन तो कभी उस गुलषन। या कि किसी पेड या पौधे की डाली पे फूल सा खिलना महकना और मुस्कुराना। या फिर किसी बियाबान जंगल मे या कि किसी बाग मे फिरते रंग बिरंगे मोर सा अपने रंग बिरंगे डैनो को फैलाके मस्त बहारों के संग नाचना नाचना और इस कदर नाचना कि सिर्फ तुम ही नही नाचो तुम्हारे साथ जमाना भी नाचने लग जाये। जहां  नाचने लग जाये और संग संग ये चॉद सितारे भी नाचने लग जायें सारी कायनात नाचने लग जाये या फिर इस नाचते झूमने संसार और कायनात के साथ तुम ही नाचने लग जाओ मस्त और मगन। बस तुम रहो और रहे तुम्हारा न्रत्य और फिर एक ऐसा वक्त आये जब तुम भी बिदा हो जाओ और रह जाये सिर्फ और सिर्फ न्रत्य प्रथ्वी सा तारों सा बादलों सा आसमान सा
और तब जो षेष बच रहेगा उसे तुम जिंदगी कह सकती हो।
वर्ना उसके पहले जो भी है मुर्दा है मरापन है उदासी है बरबादी है। बस सांसों का आना और जाना है इस खोखल से जिसे तुम शरीरकहती हो। और ...
कल रात जब मै अपने इस एकाकी पन से इस जहान से इस जिदगी से उब के सूफी साहित्य पढने लगा ओर मेरी बुलबुल तुम जानती हो उस सूफिज्म मे इसी नत्य की बात कही गयी है इसी जिंदगी के बाबत बताया गया है। जिसे दुनिया दरवेषी न्रत्य के नाम से जानती है। इस सूफी न्रत्य, इस दरवेषी न्रत्य मे भी साधक को नाचना होता है। बस नाचना होता है। नाचना ही उनकी साधना है नाचना ही उनका जीवन है नाचना ही उनका उददेष्य है बस न्रत्य न्रत्य और न्रत्य और ये न्रत्य तब तक चलता रहता है जब तक साधक चेतनाषून्य नही हो जाता।
और कल रात ये पढने के बाद मै भी अपने आप अपने एकान्त मे नाचने लगा पहले धीरे धीरे फिर तेज और तेज और तेज और तब तक नाचता रहा जब तक कि चेतना ष्षून्य नही हो गया। और जानती हो उस बेहोषी मे एक होष पैदा हुआ जो अदभुद था अनन्त था, और चॉद सितारों  सा निस्प्रह था।
तो मेरी मैना मै चाहता हूं आओ एक बार और कम से कम एक बार तो हम दोनो इस दरवेषी न्रत्य मे डूब जायें उस हद तक जो पागल पन की हद तब जाता हो सब कुछ खो जाने और ष्षून्य मे मिल जाने की हद तक जाता हो।
आओ और एक बार बस एक बार उन अनहद अदभुत न्रत्य का आनंद लो। दुबारा की जरुरत ही न होगी। वह एक न्रत्य ही काफी होगा जन्मो जन्मो तक न्रत्य करते रहने के लिये।
तुम्हारे साथ न्रत्य करने के इन्तजार मे ---
 
तुम्हारा पागल प्रेमी या जो तुम कहना चाहो।

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