Pages

Thursday, 10 May 2012

समन्दर का पानी खारा क्यूं होता है ?

 
फिजां,
तुम जानती हो ?
समन्दर का पानी खारा क्यूं होता है ?
तो सुनो --
यह बात आज नही - कल नही-  युगों युगों पुरानी है।
जब समाज न था। गांव और शहर न थे। बस्तियां न थी। बस ---
पहाड और जंगल की गुफांओं मे आदम और हव्वा रहते थे। उनमे आदम को मुझे और हव्वा को अपने आपको समझो।
दोनो उन्ही गुफाओं मे जंगलों मे अपने आदमपन मे खुश  थे आबाद थे।
लेकिन एक दिन जब ईष्वर के आदेश  की अवहेलना करके मुहब्ब्त को शेव खा लिया, तब उन्हे यही पेड पहाड और झरने पराये लगने लगे और वे बाहों मे बाहें डाले एक दूजे मे खोये खोये चलने लगे चलने लगे और
चलते चलते एक दिन दृ समन्दर के किनारे आ लगे ....
हव्वा ने जब एक साथ इतनी अथाह जल राषि देखी तो वह खुषी से किलक उठी -- और वह आदम के साथ उस अथाह जल राषि मे केलिक्रीडा करने लगी।
और तब समन्दर का मीठा पानी भी मदहोष हो गया। और उसने धीरे धीरे तुम्हारी खूबसूरती का नमक अपने मे घोल लिया और अपना मीठा पन तुम्हारे मे मिलाता गया।
और जानती हो ...
सागर तो अपना मीठापन छोड कर खारा हो गया पर तुम्हारी बाते जरुर मीठी हो गयी।
और तब से अब तक तुम्हारे वजूद का वही मीठा पर तुम्हारे बेबाक हुस्न के साथ मिल कर जब सोंधा  सोंधा महकता गमकता है तो मै ही नही सारा जहां सारी कायनात मदहोष हो जाती है।
और उसी मदहोषी के आलम मे ही युगों युगों से जन्मो जन्मो से तुम्हारे साथ ही जीता हूं , मरता हूं । 
और न जाने कितने जन्मो जन्मो तक ये यात्रा जारी रहेगी।
भले ही इस यात्रा की कोई मंजिल न हो लेकिन फिर भी इसका अपना अलग जादू है और मै इस जादू से निकलना नही चाहता दृ
निकलना नही चाहता। चाह कर भी ।
बस यूंही डूबा रहना चाहता हूं तुम्हारे हुस्न के नमक मे मीठी बातों के षहद मे ... यूं ही और यूं ही ... बस
तुम्हारा और tumhaara

बादल

No comments:

Post a Comment