अक्शर -----------------------------
अक्शर
जब कभी
मन उदास होता है
किन्कर्तव्यविमूढ़ होता है
या कि, उहापोह में फंसा होता है
या कि, कुछ करने न करने को जी चाहता है
या कि उठने और
फिर बैठने को जी चाहता है
हथेलिय कोहनी से मुड
चेहरे को ढक लेती है
उंगलियाँ आखों को,
और
उड़ने लगता हूँ
देश से परदेश तक
पूरब से पश्चिम तक
इस जंहा से उस जंहा तक
यंहा से वंहा तक
कंहा से कंहा तक
न जाने कंहा तक
तब याद आते हैं
बीते दिन
बीते पल
बिछड़े दोस्त
शहर की सड़के
मोहल्ले की गलियाँ
कालेज की बेलौस छोरियां
गुजरा बचपन
माँ की ममता
पिता की डांट
खाली खटिया
गिल्ली डंडा
कटी पतंग
और इनके साथ
याद आता है
बहुत कुछ
जो गुजर गया है
न लौटने के लिए
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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