मुक्त केश संदल त्वचा
बैठे ठाले की तरंग ----------------------------
मुक्त केश संदल त्वचा, नेत्र कँवल समान
गोरी गजगामिनी चलत, बरसे फूल गुलाब
प्रिय के मुख चुम्बन से गाल भयो गुलाल
सखी कैसे होली खेलूँ? आवत मुझको लाज
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
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