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Monday, 4 June 2012

ख्वाब में ही सही

बैठे ठाले की तरंग -------------

ख्वाब में ही सही
तेरी सूरत तो नज़र आती है

गो की मेरा घर
तेरे घर से दूर बहोत है
पै, तेरे रूह की सेंक
इधर तक आती तो है

गर निगोड़ी हवा
राह में यूँ न भटकती
तेरे आँचल की खुशबू
मेरे तक आती तो है

ये शहर की चुप्पियाँ
कानो में फुफुफुसाती हैं
ज़माने में कंही न कंही
अपनी रुसवाई तो है

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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