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Tuesday, 19 June 2012

ये अलग बात कि हम हथेली पे सूरज उगाये बैठे हैं




ये अलग बात कि हम हथेली पे सूरज उगाये बैठे हैं
मगर आपके लिए तो जुल्फों की छांह सजाये बैठे हैं
औरत हो  के तो हमेसा जलना हमारा मुक़द्दर ठहरा
पर हर बार हमी  आपके  लिए  पलकें बिछाए बैठे हैं







मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------- 

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