Pages

Friday, 8 June 2012

अपनी कविता के बारे में --------



अपनी कविता के बारे में --------

मित्रों,
मै,
कवि नही
कवि मना हूं
भावों से बना हूं
जीवन भर उन्मुक्त बहा हूं

न मानूं बंधन को
न जानू कविता के
छंदो बंदों के तटबंधों को
हरदम भावों में ही बहा हूं

जब भाव बहा करते हैं
उसमें खूब नहाता हूं फिर कुछ भावों कों
शब्दों की अंजुरी में भर भर लाता हूं
उसको ही अपनी कविता कहता हूं

मालूम है मुझको
मेरी कविताएं,
कविता के मीटर के बाहर रह जाती है
सारे नियमों को तोड़ बहा करती है

पर यह भी मालूम है मित्रों
आप न देते इस पर ध्यान
इन कमियों को मुझे बता कर
इन भावों को देते पूरा मान

मुकेश इलाहाबादी -------------------

No comments:

Post a Comment