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Friday, 29 June 2012

लकीरें ----------


लकीरें ----------

लकीरें
कहीं भी खिंची हों
किसी भी तरह
देती हैं प्रभाव अपनी तरह



लकीरें
पानी में खिंचती हैं
न दिखने की तरह
पत्थर पे खिंच जाती हैं
न मिटने की तरह
हांथों में खिच आती हैं
कर्म और भाग्य की तरह

लकीरें
आदमियत को बांट देती हैं
देश व परिवार की
सीमा रेखा की तरह

लकीरें
खिंच कर आईने में
बांट देती हैं अक्श को
न जुड़ने की तरह


क्या बता सकते हैं आप
जहों कोई लकीर न हो
अनंत आकाश की तरह


मुकेश इलाहाबादी



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