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Tuesday, 26 June 2012

रेत में न पाओगे, मेरे पैरों के निशाँ


बैठे ठाले की तरंग ------------------



रेत में न पाओगे, मेरे पैरों के निशाँ
पत्थरों में ढूंढ लो मेरे हाथो के निशाँ



कलियों सा दिल तुमने तोड़ तो दिया
खुशबू में पाओगे मेरे ज़ख्मो के निशाँ






ख़त मेरे दरिया में बहा तो आये हो,तुम   
अब लहरों में देखना मेरी यादों के निशाँ


चेहरे की झुर्रियों में पढ़ लेना एक दिन
हर शिकन में पाओगे मेरी बातों के निशाँ

मासूम था दिल मेरा, तुमने चीर तो दिया
पाओगे फिर भी तुम , मेरी दुआओं के निशाँ



मुकेश इलाहाबादी ---------------------------





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