महफ़िल में वे
जब से आये हैं
इतराए हुए फिरते हैं
आखों में मस्ती का
जाम लिए फिरते हैं
मूंगे जैसे होंठो में -
अनकही बात,
लिए फिरते हैं
एक हम हैं -
उनकी इन्ही अदाओं पे
हथेली पे जान लिए फिरते हैं
लेकिन वे हैं कि -
इन बातों को जान के भी
अनजान बने फिरते हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------
awsm line sir :)
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