एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 22 July 2012
सूखा हुआ शज़र हूँ
सूखा हुआ शज़र हूँ क्यूँ छांव ढूंढते हो ?
खँडहर हो गया हूँ क्यूँ ठाँव ढूंढते हो ?
मुद्दतों बाद शहर से लौटे हो
फिर अपना वही क्यूँ गाँव ढूंढते हो ?
मुकेश इलाहाबादी -----------------------
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