अब वफ़ा भी तुम हो बेवफा भी तुम हो
ज़िन्दगी और मौत का सामाँ भी तुम हो
बहारे ज़िन्दगी की कलियाँ हो तुम, और
साख से गिरती हुई पत्तियां भी तुम हो
मुहब्बत भी तुम हो शिकायत भी तुम हो
मेरा जिस्म भी हो औ मेरी जाँ भी तुम हो
शीशे सी है तुम्हारी ज़वानी, कैसे कह दूं कि
मेरा चेहरा भी तुम हो औ आईना भी तुम हो
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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