होठो पे हँसी रखते हो
होठो पे हँसी रखते हो
ज़ख्म छुपाये फिरते हो
हमसे तुम अपना क्यूँ,
हर राज़ निहा रखते हो
नज़दीक तुम्हारे दरिया
फिर क्यूँ प्यासे रहते हो
जब दुनिया सोई रहती
तुम क्यूँ जागे रहते हो
कांटो के शहर में रह के
फूलों सा क्यूँ खिलते हो
मुकेश इलाहाबादी -------
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