जब,
तुम्हारी
सुआ पंखी सी
झपकती आखें
याद आती हैं
तब मै खो जाता हूँ
न खत्म होने वाले
बियाबान में
किसी रेगिस्तान में
जब
तुम्हारी याद आती है
तब सूखे पीले पत्ते सा
झर जाता हूँ
और उड़ता रहता हूँ
जंहा तक हवाएं ले जाती है
फिर जमीन पे तडफडाता हूँ
देर तक
फिर से उड़ जाने को
अपनी डाल से जुड़ जाने को
मुकेश इलाहाबादी ---------
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