तनहा रह गया हूँ सिमटकर,,
रो लेता हूँ अंधेरों से लिपटकर
टूट चुकी, रिश्तो की बैसाखियाँ
ज़िन्दगी रह गयी हैं घिसटकर
गर्म लावे पर चलता रहा, जब
पाँव के छाले देखते हैं पलटकर
चेहरा उसका भी उदास था, जब
देखा मेरी मैयत नकाब पलटकर
देख कर चाँद की बेवफाई मुकेश,,
आसमा से गिरा,सितारा टूटकर
मुकेश इलाहाबादी -----------------
रो लेता हूँ अंधेरों से लिपटकर
टूट चुकी, रिश्तो की बैसाखियाँ
ज़िन्दगी रह गयी हैं घिसटकर
गर्म लावे पर चलता रहा, जब
पाँव के छाले देखते हैं पलटकर
चेहरा उसका भी उदास था, जब
देखा मेरी मैयत नकाब पलटकर
देख कर चाँद की बेवफाई मुकेश,,
आसमा से गिरा,सितारा टूटकर
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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