मौसम गुज़र गया , बरसात न हुई
आसमा से ज़मी की मुलाक़ात न हुई
यूँ तो हम मिलते रहे रोज़ ब रोज़
दोस्ती की अपनी शुरुआत न हुई
जब दिन ढला आये, शाम ढले गए
साथ उनके कभी वसले रात न हुई
सिर्फ नज़रों ही नज़रों से बात हुई
अपनी कभी खातो किताबत न हुई
रूठने और मनाने की हसरत रही
हमें एक दूजे से शिकायत न हुई
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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