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Monday, 4 February 2013

सूरज के शहर में नंगे पाँव चलते रहे


 


सूरज के शहर में नंगे पाँव चलते रहे
आग ही पीते रहे आग ही उगलते रहे

कभी गर्दो गुबार कभी वक़्त के थपेड़े
सफरे जीस्त में जाने क्या - 2 सहते रहे

किस्मत अपनी सर्द गरीब की चादर रही
हम कभी सर तो कभी पैर को ढंकते रहे ----

मुकेश इलाहाबादी -------------------------



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