जाने कितने तूफ़ान लिए ?
यादों बातों का सामान लिए
फिरते हैं हम तनहा तनहा
बुस मुट्ठी भर अरमान लिए
प्यार मुहब्बत की बातों पे
लोग मिले तीर कमान लिए
ग़ज़ल मुकम्मल लिखने को
आया हूँ एक उन्वान लिए
यूँ गुस्से मे तुम देखो मत
ग़ज़ल सुनो मुस्कान लिये
मुकेश इलाहाबादी ----------
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