एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 11 May 2013
मुख़्तसर सी मुलाकात थी,
मुख़्तसर सी मुलाकात थी,
मगर ज़िन्दगी भर याद थी
पैरों तले रौंदा गया उम्र भर
उसके लिए महज़ घास थी
कतरा-२ गल गयी रात भर,
सहर होने की पर आस थी
ग़म से तरबतर था चेहरा
चेहरे पे लेकिन उजास थी
हुई थी वो जिस दिन जुदा
सुबह से ही वह उदास थी
मुकेश इलाहाबादी --------
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