ज़ख्मो के निशाँ बचाए रक्खा है
ज़ख्मो के निशाँ बचाए रक्खा है
यादों को हमने सजाये रक्खा है
सूरज ने छिटका रखी है कड़ी धुप
तेरे लिए मैंने छांह छुपाये रक्खा है
यूँ तो गुलशन महका महका है पर
तेरे लिए मन धुप जलाए रक्खा है
दुनिया भर से अकडा - २ रहता हूँ
तेरे दर पे तो सर झुकाए रक्खा है
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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